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प्रकाशन तिथि: 21 जून 2025 | लेखक: Ashish Singh
मध्य पूर्व एक बार फिर से वैश्विक राजनीति का केंद्र बनता जा रहा है। ईरान, इजराइल और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव सिर्फ इन देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकता है।
2003 में अमेरिका ने इराक पर यह कहकर हमला किया था कि सद्दाम हुसैन के पास "Weapons of Mass Destruction" हैं। लेकिन लाखों लोगों की मौत के बाद भी ऐसा कोई हथियार नहीं मिला। अब वही डर ईरान को लेकर उठ रहा है।
गल्फ देशों जैसे UAE और सऊदी अरब को अमेरिका का समर्थक माना जाता है।
अगर ईरान इन देशों के ऑयल और पावर फैसिलिटीज़ को टारगेट करता है, तो एक मल्टी-फ्रंट युद्ध की स्थिति बन सकती है।
ईरान के पास 400 किग्रा 60% enriched uranium है। यदि यह 90% हो जाए तो 10 न्यूक्लियर बम बन सकते हैं।
“आप फैसिलिटीज़ पे बम गिरा सकते हो, माइंड्स पे नहीं।”
नॉलेज ट्रांसफरेबल होती है, इसे मिटाना संभव नहीं।
यहां से 20% ग्लोबल ऑयल ट्रेड होता है। यदि ईरान ब्लॉकेड करता है:
अगर खामेनी की सरकार गिरती है, तो:
मिडिल ईस्ट अब चेसबोर्ड नहीं, एक माइनफील्ड बन चुका है। जहां एक गलती पूरे क्षेत्र को तबाह कर सकती है। इस समय वैश्विक डिप्लोमेसी और संयम की बहुत अधिक आवश्यकता है।
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