🌸 टेक्नोलॉजी के माध्यम से महिला और बाल सशक्तिकरण: समावेशी भारत की ओर एक प्रगतिशील यात्रा 🌸

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टेक्नोलॉजी के माध्यम से महिला और बाल सशक्तिकरण 🌐 टेक्नोलॉजी के माध्यम से महिला और बाल सशक्तिकरण सशक्तिकरण का सबसे पहला और अहम पहलू है एक्सेस (Access) । जब किसी महिला या बच्चे को सेवाओं, अधिकारों और अवसरों तक सहज और पारदर्शी पहुंच मिलती है, तभी वे सही मायनों में सशक्त बनते हैं। 🚀 पिछले दशक में तकनीक की भूमिका पिछले एक दशक में हमने देखा है कि कैसे टेक्नोलॉजी ने "डेमोक्रेटिक एक्सेस" को संभव बनाया है। डिजिटल इंडिया और समावेशी विकास के विज़न ने महिलाओं और बच्चों तक सरकारी सेवाओं की लास्ट माइल डिलीवरी को साकार किया है। 🏫 सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण ट्रैकर सक्षम आंगनबाड़ी पहल के अंतर्गत 2 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों को मॉडर्न और टेक-सक्षम बनाया गया है। वर्कर्स को स्मार्टफोन, डिजिटल डिवाइसेस और इनोवेटिव टूल्स से लैस किया गया है। पोषण ट्रैकर एक वेब पोर्टल है जो 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों से जुड़ा हुआ है। इससे 10.14 करोड़ से अधिक लाभार्थी – गर्भवती महिलाएं, शिशु, किशोरियां – लाभान्वित हो रही हैं। रियल टाइम डेटा, नोटिफिकेशन और सप्लाई की ट्रैकिंग इसको बे...

क्या सभी की जान की कीमत एक जैसी है? एक सोचने वाला सवाल

🚨 क्या सभी की जान की कीमत एक जैसी है? एक सोचने वाला सवाल!

📅 25 जून 2025

क्या हर जान की कीमत एक जैसी है?

✈️ एयर इंडिया हादसा और करोड़ों का मुआवज़ा:

हाल ही में एयर इंडिया की एक फ्लाइट अहमदाबाद में क्रैश हो गई। हादसा बहुत दर्दनाक था। लेकिन जैसे ही हादसा हुआ, टाटा ग्रुप ने तत्काल घोषणा कर दी — हर मृतक यात्री के परिजनों को ₹1 करोड़ रुपये मुआवज़ा मिलेगा।

सिर्फ यही नहीं, मॉन्ट्रियल कन्वेंशन के अनुसार, यदि एयरलाइंस की लापरवाही से एक्सीडेंट हुआ है, तो उन्हें लगभग ₹1.8 करोड़ तक का कंपनसेशन देना ही पड़ेगा।

अब सवाल ये है — टाटा का ₹1 करोड़ का ऐलान इस ₹1.8 करोड़ के अतिरिक्त है या उसी का हिस्सा?

👉 कुल मिलाकर देखें तो एक यात्री की जान की "कीमत" ₹1.8 करोड़ से ₹2.8 करोड़ तक मानी जा रही है।


🚆 और रेलवे हादसे? सिर्फ ₹5 लाख!

अब ज़रा रेलवे हादसों की ओर देखिए। हाल ही में मुंबई में चलती ट्रेन से गिरकर 6-7 लोगों की मौत हो गई।

राज्य सरकार ने क्या दिया? — बस ₹5 लाख का मुआवज़ा।

रेलवे के अनुसार (रेलवे एक्ट, 1989), अधिकतम ₹8 लाख तक कंपनसेशन दिया जा सकता है — वो भी अगर पीड़ित परिवार रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में केस लड़ें।

⚖️ लेकिन कौन लड़ेगा लंबा मुकदमा? अधिकतर गरीब परिवार तो यह क्लेम फाइल ही नहीं करते।


🧹 सीवर में मरने वालों का क्या?

देश में हर साल कई सफाईकर्मी मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान गैस लीक या दम घुटने से जान गंवा देते हैं।

इनकी खबरें ना मीडिया में आती हैं, ना सरकार मुआवज़ा देती है।

कोई जांच नहीं, कोई सस्पेंशन नहीं। जैसे उनकी जान की कोई कीमत ही नहीं।


📊 तो सवाल उठता है: क्या भारत में जान की कीमत वर्ग, माध्यम और सिस्टम पर निर्भर करती है?

  • ✈️ विमान हादसा: ₹2.8 करोड़
  • 🚆 रेलवे हादसा: ₹5 लाख
  • 🧹 सीवर हादसा: कोई आंकड़ा नहीं, कोई मुआवज़ा नहीं

👨‍⚖️ जवाबदेही (Accountability) कहाँ है?

जहां एयरलाइन हादसा होता है, वहां तुरंत जांच कमेटी बनती है, रिपोर्ट आती है, सुधार की प्रक्रिया शुरू होती है।

लेकिन रेलवे और सीवर जैसे हादसों में न तो किसी अफसर की जवाबदेही तय होती है, न ही सिस्टम में कोई सुधार दिखता है।


💔 क्या हम यही समाज बन गए हैं?

  • अमीरों की मौत पर पूरा सिस्टम हिल जाता है,
  • गरीबों की मौत बस एक संख्या बनकर रह जाती है।

🗣️ समाज को अब चुप नहीं रहना चाहिए:

  • जवाबदेही तय होनी चाहिए।
  • हर जान की कीमत बराबर होनी चाहिए।
  • सिस्टम में सुधार और इंसानियत दोनों ज़रूरी हैं।

🔗 आपका क्या विचार है? क्या हमें इस दोहरी व्यवस्था को स्वीकार कर लेना चाहिए? कमेंट करके जरूर बताएं।

📢 इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक शेयर करें — ताकि जागरूकता फैले और बदलाव की शुरुआत हो।


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📌 स्रोत: जन-सरोकार व जागरूकता हेतु विचार
🖋️ प्रस्तुति: आशीष सिंह
📍 pcsskillsmantra.blogspot.com

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