विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई भारत की प्रगति में चॉइस, नियंत्रण और पूंजी की भूमिका

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भारत की प्रगति में चॉइस, नियंत्रण और पूंजी की भूमिका ✒️ विश्व जनसंख्या दिवस विशेष लेख 📌 प्रस्तावना आज जब हम विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) मना रहे हैं, तो यह सोचने का समय है कि 8 अरब से अधिक की वैश्विक जनसंख्या के बीच भारत जैसे युवा देश को कैसे सही दिशा दी जाए? इस वर्ष की थीम है: "युवाओं को सशक्त बनाएं ताकि वे अपनी पसंद के परिवार बना सकें – एक न्यायपूर्ण और आशावान विश्व में।" इसका सीधा संबंध है: स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता से महिला सशक्तिकरण से जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) से 1994: जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 1994 में हुए जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) में यह तय किया गया था कि: हर व्यक्ति को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए कोई सामाजिक दबाव, हिंसा या भेदभाव नहीं होना चाहिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं समय पर मिलनी चाहिए इस सम्मेलन ने बॉडीली ऑटोनोमी और सूचित निर्णय की नींव रखी।...

भारत की जनसंख्या: अवसर या संकट?

भारत की जनसंख्या: अवसर या संकट?

कुछ साल पहले तक भारत दुनिया में जनसंख्या के मामले में दूसरे स्थान पर था और चीन पहले स्थान पर था। लेकिन अब भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।

जब भारत और चीन आजाद हुए थे, तब भारत की आबादी थी 35 करोड़ (350 मिलियन) और चीन की थी 55 करोड़ (550 मिलियन)।

चीन की सफलता और भारत की चूक

1949 से 1980 के बीच चीन ने महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और जनसंख्या नियंत्रण पर बड़ा निवेश किया। नतीजा – आज चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

भारत ने विशेषकर हिंदी भाषी राज्यों (बिहार, यूपी, झारखंड) में इन मुद्दों को नजरअंदाज किया, जिसका खामियाजा आज भी देश भुगत रहा है।

तेजी से बढ़ती जनसंख्या के खतरे

  • रोजगार की कमी
  • अशिक्षा और गरीबी का चक्र
  • कम जागरूकता = अधिक बच्चे

डेमोग्राफिक डिविडेंड: अब या कभी नहीं

1980 से 2040 तक भारत में काम करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक रही – इसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहते हैं।

लेकिन सरकार इस अवसर का पूरा लाभ नहीं उठा पाई। युवाओं को न स्किल मिला, न रोजगार। इसके कारण युवा अपराध की ओर बढ़े और अर्थव्यवस्था को लाभ की बजाय हानि हुई।

भारत में बेरोजगारी की चार परतें

  1. नई जनरेशन: हर साल नई लेबर फोर्स
  2. वर्तमान बेरोजगार
  3. डिसरेज्ड वर्कर्स: NEET (Not in Education, Employment, or Training)
  4. अंडर-इंप्लॉयड: जैसे उच्च शिक्षित लोग क्लर्क या लेबर का काम कर रहे हैं

बढ़ती जनसंख्या के कारण

  • बिहार (TFR = 3.0), यूपी (2.7), झारखंड (2.5)
  • रिप्लेसमेंट लेवल = 2.1 होना चाहिए

फैमिली प्लानिंग की अनमैट नीड

  • यूपी: 18.1%, बिहार: 21.2% लोग फैमिली प्लानिंग चाहते हैं पर सुविधा नहीं है
  • कमी: जागरूकता, संसाधन और सरकारी हेल्थ सर्विसेज

चाइल्ड मैरिज की गंभीर स्थिति

बिहार में 42.5% लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। भारत का औसत 26.8% है।

ये आंकड़े “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं की असल सच्चाई दिखाते हैं।

कंट्रासेप्टिव का कम उपयोग

  • भारत में केवल 53.5% कपल्स कोई फैमिली प्लानिंग मेथड यूज करते हैं
  • यूपी: 41.5%, बिहार: 24.1%

इसका परिणाम?

  • कम प्रति व्यक्ति आय
  • बढ़ता माइग्रेशन, शहरी स्लम्स में बढ़ोतरी
  • भविष्य में “एजिंग पॉपुलेशन” की चुनौती

आगे क्या करना चाहिए?

  • महिला शिक्षा और हेल्थ पर फोकस करें
  • स्किल डेवलपमेंट और नॉन-फार्म जॉब्स बढ़ाएं
  • रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विस में सुधार करें
  • चाइल्ड मैरिज रोके और जेंडर इक्वलिटी को बढ़ावा दें
  • बुजुर्गों के लिए सोशल सिक्योरिटी और हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम तैयार करें

निष्कर्ष: जनसंख्या भारत के लिए एक अवसर हो सकता था लेकिन सही पॉलिसी के अभाव में यह अब एक संकट बनती जा रही है। आने वाले 10–15 वर्षों में जरूरी है कि हम शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर बड़ा कदम उठाएं।



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