विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई भारत की प्रगति में चॉइस, नियंत्रण और पूंजी की भूमिका

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भारत की प्रगति में चॉइस, नियंत्रण और पूंजी की भूमिका ✒️ विश्व जनसंख्या दिवस विशेष लेख 📌 प्रस्तावना आज जब हम विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) मना रहे हैं, तो यह सोचने का समय है कि 8 अरब से अधिक की वैश्विक जनसंख्या के बीच भारत जैसे युवा देश को कैसे सही दिशा दी जाए? इस वर्ष की थीम है: "युवाओं को सशक्त बनाएं ताकि वे अपनी पसंद के परिवार बना सकें – एक न्यायपूर्ण और आशावान विश्व में।" इसका सीधा संबंध है: स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता से महिला सशक्तिकरण से जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) से 1994: जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 1994 में हुए जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) में यह तय किया गया था कि: हर व्यक्ति को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए कोई सामाजिक दबाव, हिंसा या भेदभाव नहीं होना चाहिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं समय पर मिलनी चाहिए इस सम्मेलन ने बॉडीली ऑटोनोमी और सूचित निर्णय की नींव रखी।...

ADM जबलपुर केस

 नमस्ते दोस्तों! 🙏

आज हम बात करेंगे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के उस सबसे काले अध्याय की, जिसे आज भी "Judicial Surrender" यानी न्यायपालिका के समर्पण के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। यह केस था – ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस (1976)। आइए, इस केस की पूरी कहानी ब्लॉग फॉर्मेट में विस्तार से समझते हैं।



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🏛️ बैकग्राउंड: क्यों जरूरी थी जुडिशरी को स्पेशल पावर?


जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो हमारे संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया कि देश की जनता को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) मिलें और अगर भविष्य में सरकार मनमानी करे, तो न्यायपालिका इन अधिकारों की रक्षा कर सके।


अनुच्छेद 32: नागरिक सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।


अनुच्छेद 226: नागरिक हाई कोर्ट में भी अपील कर सकते हैं।




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🆘 1975 की इमरजेंसी और हालात


26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति (Internal Disturbance) के आधार पर आपातकाल (Emergency) लगा दी।

उस समय:


अर्थव्यवस्था डांवाडोल थी।


राजनीतिक माहौल उथल-पुथल भरा था (जेपी आंदोलन)।


12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया।


अगले दिन ही इमरजेंसी घोषित कर दी गई।




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🚨 क्या हुआ इमरजेंसी के दौरान?


संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 22 सस्पेंड कर दिए गए।


मीसा (MISA) कानून के तहत हज़ारों लोगों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।


प्रेस सेंसरशिप लागू की गई।


हेबियस कॉर्पस जैसे महत्वपूर्ण अधिकार तक छीन लिए गए।




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⚖️ अब आता है ADM जबलपुर केस


जब लोगों ने गिरफ्तारी के खिलाफ हाई कोर्ट्स में याचिकाएं (Petitions) लगाईं, तो कई हाई कोर्ट्स ने सरकार से सवाल पूछे:

“आपने बिना कारण बताए लोगों को कैसे गिरफ्तार किया?”


सरकार इन फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई और यही केस बना –

👉 ADM Jabalpur v. Shivkant Shukla (1976)


मुख्य सवाल:


1. इमरजेंसी के दौरान क्या नागरिक न्यायालय में Fundamental Rights की रक्षा की मांग कर सकते हैं?



2. क्या Habeas Corpus जैसी याचिका लागू रह सकती है?





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⚖️ सुप्रीम कोर्ट का विवादित फैसला


5 जजों की बेंच थी:


A.N. Ray


M.H. Beg


Y.V. Chandrachud


P.N. Bhagwati


Justice H.R. Khanna (विरोधी मत)



फैसला (4:1):

👉 “जब मौलिक अधिकार सस्पेंड हैं, तो नागरिक कोर्ट में भी नहीं जा सकते, चाहे उनकी गिरफ्तारी गैरकानूनी ही क्यों न हो।”

➡️ यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे दुखद और लज्जाजनक निर्णय माना गया।



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🌟 जस्टिस एच.आर. खन्ना – असली हीरो


इकलौते जज जिन्होंने असहमति जताई।

उन्होंने कहा:


> “जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राकृतिक अधिकार हैं, संविधान केवल इन्हें मान्यता देता है।”




लेकिन उन्हें उनके इस साहसिक मत की कीमत चुकानी पड़ी –

👉 उन्हें चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया।



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🔁 बाद में क्या हुआ?


1977: इमरजेंसी खत्म, जनता सरकार आई।


1978 (मेनका गांधी केस): सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 के दायरे को बढ़ाया, और कहा कि कानून फेयर, जस्ट और रीजनेबल होना चाहिए।


44वां संविधान संशोधन (1978): यह तय कर दिया गया कि आपातकाल में भी आर्टिकल 20 और 21 सस्पेंड नहीं होंगे।


2017 (पुट्टास्वामी केस): 9 जजों की बेंच ने ADM जबलपुर के फैसले को पूरी तरह ओवररूल कर दिया।



जस्टिस D.Y. चंद्रचूड़ (जिनके पिता Y.V. Chandrachud इस फैसले में शामिल थे) ने लिखा:


> “यह निर्णय (ADM जबलपुर) गलत था। इसे हमेशा के लिए भुला देना चाहिए।”







✍️ निष्कर्ष


ADM जबलपुर केस एक Case Study है कि जब न्यायपालिका सरकार के सामने झुक जाए, तो लोकतंत्र को कितनी बड़ी चोट लगती है।


यह केस हमें सिखाता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की नैतिकता को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए।


और हमें हमेशा याद रखना चाहिए –



> “जब सत्ता निरंकुश हो जाए, तो न्यायपालिका ही अंतिम आशा होती है।”





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धन्यवाद 🙏

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