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Post-Independence India टॉपिक में इमरजेंसी एक ऐसा मुद्दा है जो राजनीतिक संस्थाओं की मजबूती या कमजोरी, नेतृत्व की भूमिका, और जनता की लोकतांत्रिक चेतना को उजागर करता है। यह भारतीय संविधान, लोकतंत्र और संस्थाओं की परीक्षा थी।
जब कोई देश संविधान की सामान्य प्रक्रिया को निलंबित करके असाधारण शक्तियों का प्रयोग करता है, तो उस स्थिति को इमरजेंसी कहा जाता है। भारत में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत यह लागू होती है।
24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक राहत दी, लेकिन 25 जून 1975 की रात इमरजेंसी घोषित कर दी गई।
"Internal Disturbance" के आधार पर इमरजेंसी लगाई गई, जिसे 44वें संशोधन में बदलकर "Armed Rebellion" किया गया।
संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चला। अधिकारियों को कोटा दिया गया था, विशेषकर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया।
दिल्ली के इस इलाके में जबरन अतिक्रमण हटाया गया, विरोध में पुलिस फायरिंग हुई जिसमें कई लोग मारे गए।
कुछ लोगों ने इसे अनुशासन का समय कहा। विनोबा भावे ने इसे “अनुशासन पर्व” कहा।
“शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं।” – विनोबा भावे
लेकिन लोकतंत्र को कुचलना अनुशासन नहीं हो सकता।
इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय था लेकिन इसने दिखा दिया कि जनता ही लोकतंत्र की असली ताक़त है।
“लोकतंत्र केवल संविधान से नहीं, जनता की इच्छा से जीवित रहता है।”
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