विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई भारत की प्रगति में चॉइस, नियंत्रण और पूंजी की भूमिका
✒️ विश्व जनसंख्या दिवस विशेष लेख
📌 प्रस्तावना
आज जब हम विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) मना रहे हैं, तो यह सोचने का समय है कि 8 अरब से अधिक की वैश्विक जनसंख्या के बीच भारत जैसे युवा देश को कैसे सही दिशा दी जाए?
इस वर्ष की थीम है:
"युवाओं को सशक्त बनाएं ताकि वे अपनी पसंद के परिवार बना सकें – एक न्यायपूर्ण और आशावान विश्व में।"
इसका सीधा संबंध है:
- स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता से
- महिला सशक्तिकरण से
- जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) से
1994: जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
1994 में हुए जनसंख्या और विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) में यह तय किया गया था कि:
- हर व्यक्ति को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए
- कोई सामाजिक दबाव, हिंसा या भेदभाव नहीं होना चाहिए
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं समय पर मिलनी चाहिए
इस सम्मेलन ने बॉडीली ऑटोनोमी और सूचित निर्णय की नींव रखी।
भारत की युवा शक्ति: अवसर और चुनौती
भारत में 15 से 29 वर्ष के युवाओं की संख्या लगभग 37.1 करोड़ है।
यह हमें दुनिया का सबसे युवा देश बनाता है।
नीति आयोग और विश्व बैंक के अनुसार, यदि हम इस युवा शक्ति का सही उपयोग करें, तो 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था में ₹83 लाख करोड़ (1 ट्रिलियन डॉलर) का अतिरिक्त योगदान संभव है।
इसके लिए ज़रूरी है:
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
- पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं
- कौशल विकास
- सुरक्षित और स्वायत्त प्रजनन निर्णय
महिला अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता
आज भी भारत में अनेक महिलाएं अपनी मर्ज़ी से बच्चे पैदा करने या शादी करने का निर्णय नहीं ले पातीं।
- 36% महिलाएं अनचाही गर्भधारण का सामना करती हैं
- 30% महिलाएं अपनी इच्छा के अनुसार परिवार नियोजन नहीं कर पातीं
- 23% महिलाओं को दोनों समस्याएं झेलनी पड़ती हैं
➡️ ये आंकड़े स्वायत्तता की कमी और सूचना के अभाव को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार:
- बाल विवाह में 2006 से अब तक 50% की कमी आई है, परंतु आज भी 23.3% विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हो रहे हैं।
- 15 से 19 वर्ष की लड़कियों में मातृत्व दर 7% है।
- कुछ राज्यों में यह दर 14% तक पहुँच गई है।
➡️ यह क्षेत्रीय असमानता को उजागर करता है।
बदलाव की कहानियाँ: योजनाओं से सशक्तिकरण
1. उड़ान परियोजना (राजस्थान – 2017-22)
- 30,000 बाल विवाह रोके गए
- 15,000 किशोर गर्भधारण को रोका गया
- शिक्षा से निर्णय क्षमता बढ़ी
2. अद्विका कार्यक्रम (उड़ीसा – 2019-20)
- 11,000 गांव “बाल विवाह मुक्त” घोषित
- 950 विवाह तुरंत रोके गए
- शिक्षा, स्किल और लीडरशिप ट्रेनिंग दी गई
3. मंज़िल परियोजना (राजस्थान)
- 28,000 युवतियों को प्रशिक्षण दिया गया
- 16,000 पहली बार नौकरी करने गईं
- कार्यस्थलों को जेंडर-फ्रेंडली बनाया गया
शिक्षा: सशक्तिकरण की पहली सीढ़ी
यूनिसेफ के अनुसार, यदि एक लड़की 1 वर्ष भी सेकेंडरी शिक्षा प्राप्त करती है तो बाल विवाह की संभावना 6% तक कम हो जाती है।
👉 शिक्षा से:
- आत्मनिर्भरता बढ़ती है
- निर्णय लेने की क्षमता आती है
- सामाजिक बदलाव संभव होते हैं
समाधान: बहुआयामी दृष्टिकोण
- संपूर्ण यौन और प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा
- गर्भनिरोधक उपायों की उपलब्धता
- सुरक्षित गर्भपात सेवाएं
- पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और करियर मार्गदर्शन
- स्कॉलरशिप, नकद प्रोत्साहन योजनाएं
- क्रेच सुविधा और लचीले काम के घंटे
👉 ये सभी कदम महिलाओं को केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्णयकर्ता बनाएंगे।
निष्कर्ष: सशक्त युवा = प्रगति का इंजन
जब कोई युवती अपने जीवन के निर्णय स्वयं ले पाती है — शादी, पढ़ाई, करियर या मातृत्व — तो वह न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि देश की प्रगति में योगदान भी देती है।
📌 चॉइस + नियंत्रण + अवसर = समृद्ध भारत
📌 उड़ान, अद्विका और मंज़िल जैसे मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा:
“युवाओं को सशक्त करें, तभी समाज में सच्चे परिवर्तन होंगे।”
✍️ लेखक: [आशीष]
📅 प्रकाशन तिथि: 11 जुलाई, विश्व जनसंख्या दिवस
📚 संदर्भ: भारतीय समाज, महिला सशक्तिकरण, जनसंख्या और विकास (GS पेपर 1 – UPSC)
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